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मैं आज तक नहीं "समझ" पाया कि..

अकसर "लोगों" को "ईश्वर" से "शिकायत"
क्यों रहती है?

उन्होने हमारे "पेट" भरने की "जिम्मेदारी"
ली है हमारी "पेटियां" भरने की नहीं

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