loading...
भागवत कथा की शुरुआत

श्रीमद्भागवत कथा (Shrimad Bhagwat)  श्रवण से जन्म जन्मांतर के विकार नष्ट होकर प्राणी मात्र का लौकिक व आध्यात्मिक विकास होता है।  शनि देव की कथा क्लिक कीजिए

जहां अन्य युगों में धर्म लाभ एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए कड़े प्रयास करने पड़ते हैं, कलियुग में कथा सुनने मात्र से व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। 

सोया हुआ ज्ञान वैराग्य कथा श्रवण से जाग्रत हो जाता है। 

कथा कल्पवृक्ष के समान है, जिससे सभी इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है।

महर्षि श्रृंगी अपने पिता ऋषि शमीक के आश्रम में अन्य ऋषिकुमारों के साथ रहकर अध्ययन कर रहे थे। 

एक दिन सब विद्यार्थी जंगल गए हुए थे और आश्रम में शमीक ऋषि समाधि में बैठे थे।👌 असली मानव की पहचान क्लिक कीजिए

तभी प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित आश्रम पहुंचे। राजा आश्रम में पानी खोजने लगे। 

समाधि में बैठे शमीक ऋषि को प्रणाम कर विनम्रता से कहा- मुझे प्यास लगी है; पानी दीजिए! 

राजा के दो-तीन बार कहने पर भी ऋषि नहीं उठे, तो राजा को लगा ऋषि, ध्यान का ढोंग कर रहे हैं।

राजा को बड़ा क्रोध आया और पास में एक मरे सांप को उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया। 

राजा परीक्षित को आश्रम से जाते हुए एक ऋषि कुमार ने दूर से देखा और जाकर श्रृंगी को खबर दी। 

सभी राजा के स्वागत के लिए आश्रम पहुंचे। 
राजा जा चुके थे और ध्यान में बैठे शमीक ऋषि के गले में मरा सांप पड़ा था। 

इतना देखकर श्रृंगी को क्रोध आ गया और हाथ में पानी लेकर शाप दिया कि.. 

"मेरे ऋषि पिता का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से होगी !" 

तभी ऋषिकुमारों ने ऋषि शमीक के गले से सांप निकाला इसी बीच शमीक की समाधि टूट गई। 

शमीक ऋषि ने पूछा, क्या बात है? तब श्रृंगी ने सारी बात बताई।

शमीक बोले, बेटा, राजा परीक्षित के साधारण अपराध के लिए तुमने जो सर्पदंश से मृत्यु का भयंकर शाप दिया है, यह बहुत बुरा है। 

हमें यह शोभा नहीं देता! बेटा श्रृंगी, अभी तुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। 

अब तू भगवान की शरण जा और अपने अपराध की क्षमा मांग। 

राजा परीक्षित को राजभवन पहुंचते-पहुंचते अपनी गलती का अहसास हो चुका था। 

थोड़ी देर बाद शमीक ऋषि का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास पहुंचा और उसने कहा... 

राजन्, ब्रह्मसमाधि में लीन शमीक ऋषि की ओर से आपका यथोचित सत्कार नहीं हुआ। 

इसलिए उन्हें अत्यंत खेद है। किंतु, आपने बिना सोचे-समझे जो मरे सांप को उनके गले में डाल दिया। 

इस कारण उनके पुत्र श्रृंगी ने आपको, आज से सातवें दिन सांप काटने से मृत्यु का शाप दिया है। यह शाप असत्य नहीं होगा।

अतः सात दिन आप अपना समय ईश्वर-चिंतन और मोक्षमार्ग की साधना में बिताएं। 

राजा को संतोष हुआ कि मेरे द्वारा हुए अपराध के लिए मुझे उचित दंड मिलेगा! 

अब राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास पहुंचे। 

शुकदेवजी ने परीक्षित को सात दिन भागवत-कथा (shrimad bhagwat) सुनाई। 

तभी से, यह पुण्यप्रद भागवत सप्ताह सुनने की परंपरा प्रारंभ हुई

 जय जय श्री राधे क्लिक कीजिए

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.

Followers

Tere Sg Yara

Tere Sg Yara