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जिस से प्रेम होता है उसी से भय भी होता हैं।
     प्रेम ही सारे दुःखो का मूल हैं।

अतः प्रेम बन्धनों को तोड़कर सुखपूर्वक रहना चाहिए।ओर पढे।
                             चाणक्य नीति।

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